मुकेश कुमार संवाददाता/अमन केसरी न्यूज़
रुद्रपुर :- दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से आर्क होटल रुद्रपुर में मासिक भंडारे का आयोजन किया गया जिसमें सत्संग प्रवचन करते हुए स्वामी नरेंद्रानंद जी ने कहा कि जन्म से मृत्यु तक बचपन से बुढ़ापे तक एक दौड़ निरंतर चलती है और वह है सुख को पाने की ! मानवीय दशा अत्यंत दुखद है उसकी दुख की कहानी क्या है?हम सबके पीछे अपनी करनी जिम्मेदार है अज्ञानता का शिकार व्यक्ति पूरा जीवन क्या करता है एक-एक सुख के तिनके को इकट्ठा करता है सारी शक्ति और कीमती समय सुख के लिए खर्च करता है कहीं से भी किसी भी वस्तु की प्राप्ति हो जाए! एक बेचैनी सी रहती है सदैव इंसान के मानस पटल पर पर सुख की तलाश में वह बहुत दूर चला जाता है किसी और ही दिशा में चला जाता है किसी और ही उलझन को बूनता चला जाता है और धीरे-धीरे यही जाल इतना विशाल हो जाता है कि उसका कोई छोर दिखाई नहीं देता सुख के तिनके की लालसा उसकी जीवन में ढेरो दुखों को निमंत्रण देता है परंतु कैसा आश्चर्य है पाने की आकांक्षा कुछ और थी परंतु प्राप्ति कुछ और की हो जाती है आखिर इसके पीछे कारण क्या है इसका कारण अवश्य ही जानकर सूझबूझ से काम लेना होगा क्योंकि आज प्रत्येक मानव के साथ यही प्रतीत हो रहा ही! इसका कारण और निवारण हमें तुलसीदास जी द्वारा रचित ज्ञान दीपक प्रसंग से स्पष्ट होता है वह इस प्रसंग में लिखते हैं कि अगर एक मनुष्य अंधेरे कमरे में एक गांठ सुलझाना चाहे तो क्या होगा वह उस गांठ को सुलझाने की बजाय उसे और अधिक उलझा लेगा वह उसे अंधकार में कभी भी सुलझा नहीं पाएगा परंतु यदि उस कमरे में दीपक जला लिया जाए तो दीपक की रोशनी में मनुष्य गांठ को जल्दी सुलझा सकता है इसी प्रकार मनुष्य आज अज्ञानता की अंधकार में विचरण कर रहा है इस अंधकार में सुख को ढूंढता फिर रहा है परंतु कैसे मिलेगा असंभव है इसलिए आवश्यकता है दीप जलाने की अर्थात प्रकाश करने की जब तक उसके भीतर में ज्ञान का दीपक प्रज्वलित नहीं होगा तब तक मनुष्य दुखों का अधिकारी रहेगा और ज्ञान की प्राप्ति के लिए आवश्यकता है पूर्ण संत सतगुरु की शरण में जाने की! सत्संग प्रवचन के साथ-साथ सुमधुर भजनों का गायन भी किया गया !
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दिव्या ज्योति जागृति संस्था के माध्यम से आर्क होटल रुद्रपुर में मासिक भंडारे का किया गया आयोजन
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रुद्रपुर :- दिव्य ज्योति जागृति संस्थान की ओर से आर्क होटल रुद्रपुर में मासिक भंडारे का आयोजन किया गया जिसमें सत्संग प्रवचन करते हुए स्वामी नरेंद्रानंद जी ने कहा कि जन्म से मृत्यु तक बचपन से बुढ़ापे तक एक दौड़ निरंतर चलती है और वह है सुख को पाने की ! मानवीय दशा अत्यंत दुखद है उसकी दुख की कहानी क्या है?हम सबके पीछे अपनी करनी जिम्मेदार है अज्ञानता का शिकार व्यक्ति पूरा जीवन क्या करता है एक-एक सुख के तिनके को इकट्ठा करता है सारी शक्ति और कीमती समय सुख के लिए खर्च करता है कहीं से भी किसी भी वस्तु की प्राप्ति हो जाए! एक बेचैनी सी रहती है सदैव इंसान के मानस पटल पर पर सुख की तलाश में वह बहुत दूर चला जाता है किसी और ही दिशा में चला जाता है किसी और ही उलझन को बूनता चला जाता है और धीरे-धीरे यही जाल इतना विशाल हो जाता है कि उसका कोई छोर दिखाई नहीं देता सुख के तिनके की लालसा उसकी जीवन में ढेरो दुखों को निमंत्रण देता है परंतु कैसा आश्चर्य है पाने की आकांक्षा कुछ और थी परंतु प्राप्ति कुछ और की हो जाती है आखिर इसके पीछे कारण क्या है इसका कारण अवश्य ही जानकर सूझबूझ से काम लेना होगा क्योंकि आज प्रत्येक मानव के साथ यही प्रतीत हो रहा ही! इसका कारण और निवारण हमें तुलसीदास जी द्वारा रचित ज्ञान दीपक प्रसंग से स्पष्ट होता है वह इस प्रसंग में लिखते हैं कि अगर एक मनुष्य अंधेरे कमरे में एक गांठ सुलझाना चाहे तो क्या होगा वह उस गांठ को सुलझाने की बजाय उसे और अधिक उलझा लेगा वह उसे अंधकार में कभी भी सुलझा नहीं पाएगा परंतु यदि उस कमरे में दीपक जला लिया जाए तो दीपक की रोशनी में मनुष्य गांठ को जल्दी सुलझा सकता है इसी प्रकार मनुष्य आज अज्ञानता की अंधकार में विचरण कर रहा है इस अंधकार में सुख को ढूंढता फिर रहा है परंतु कैसे मिलेगा असंभव है इसलिए आवश्यकता है दीप जलाने की अर्थात प्रकाश करने की जब तक उसके भीतर में ज्ञान का दीपक प्रज्वलित नहीं होगा तब तक मनुष्य दुखों का अधिकारी रहेगा और ज्ञान की प्राप्ति के लिए आवश्यकता है पूर्ण संत सतगुरु की शरण में जाने की! सत्संग प्रवचन के साथ-साथ सुमधुर भजनों का गायन भी किया गया !
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