मुकेश कुमार संवाददाता/अमन केसरी न्यूज़
दिल्ली :- ऑब्सेसिव-कंपल्सिव डिसऑर्डर (OCD) एक तरह की मानसिक बीमारी है जिसमें बार-बार एक ही तरह के विचार आते हैं. दुनियाभर में ओसीडी से लाखों लोग ग्रसित हैं जिससे उन्हें तनाव होता है और उनकी रूटीन लाइफ पर इसका गलत असर पड़ता है. इस तरह के मामलों में हालांकि दवाई और थेरेपी काफी कारगर रहती हैं लेकिन कुछ बीमार ऐसे भी होते हैं जो इन तरीकों से ठीक नहीं हो पाते. इस तरह के मरीजों के इलाज के लिए एंटर डीप ट्रांसक्रेनियल मैग्नेटिक स्टिमुलेशन (डीप TMS)एक बहुत ही क्रांतिकारी और नॉन इनवेसिव ट्रीटमेंट है जो ओसीडी थेरेपी की तस्वीर बदल रहा है. इसमें मैग्नेटिक वेव के जरिए दिमाग के प्रभावित हिस्से को उत्तेजित किया जाता है और न्यूरोन रिपेयर की जाती है. इससे ओसीडी के लक्षणों में कमी आती है और मरीज को रिलीफ मिलता है. तुलसी हेल्थ केयर के फाउंडर व डायरेक्टर डॉक्टर गौरव गुप्ता ने डीप टीएमएस थेरेपी के बारे में विस्तार से जानकारी दी है.
इस प्रक्रिया में स्कैल्प यानी खोपड़ी से एक मैग्नेटिक कॉइल अटैच की जाती है जिसे किसी इलेक्ट्रिक पल्स जनरेटर या स्टिमुलेटर से जोड़ा जाता है. इससे कॉइल में इलेक्ट्रिक करंट जाता है जिससे मैग्नेटिक वेव पैदा होती हैं जो दिमाग के टारगेटेड एरिया पर जाकर लगती हैं. जिन मरीजों के दिमाग में मैग्नेटिक वेव से स्टिमुलेशन किया जाता है वो डिप्रेशन या ओसीडी के शिकार मरीजों की तुलना में ज्यादा एक्टिव पाए जाते हैं.
अन्य थेरेपी की तुलना में डीप टीएमएस का सबसे ज्यादा फायदा इसका नॉन इनवेसिव होना है. इलेक्ट्रोकंवल्सिव थेरेपी से उलट इसमें किसी एनेस्थीसिया या सीजर इंडक्शन की जरूरत नहीं होती जिससे मरीज की रिकवरी तुरंत होती है और मेमोरी लॉस जैसा साइड इफेक्ट नहीं होता. इसके अलावा, डीप टीएमएस एफडीए द्वारा अप्रूव है जिसे डिप्रेशन का वैकल्पिक उपचार माना गया है. स्टडी ज से पता चलता है कि इससे डिप्रेशन के लक्षण काफी कम होते हैं और दवाइयों से जो दुष्प्रभाव होते हैं वो भी इसमें नहीं होते.
डीप टीएमएस और स्टैंडर्ड टीएमएस में ये अंतर होता है कि मैग्नेटिक पल्स ब्रेन के अंदर कहां तक जा पाती है. डीप टीएमएस में ब्रेन के अंदर ज्यादा स्टिमुलेशन हो पाता है जिसके चलते ओसीडी व अन्य दिमागी बीमारियों के इलाज में ये प्रक्रिया काफी असरदार साबित होती है. ओसीडी के मामलों में डीप टीएमएस प्रक्रिया से इलाज को लेकर बहुत सारी स्टडीज में पॉजिटिव रिजल्ट बताए गए हैं. डीप टीएमएस प्रक्रिया से गुजरने वाले करीब 75 फीसदी मरीजों की हालत में सुधार हो जाता है जिनमें से करीब आधों को राहत मिल जाती है. इस तरह ओसीडी व मेंटल कंडीशन के मामलों में ये ट्रीटमेंट काफी फायदेमंद रहा है.
द यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने 2018 में ओसीडी ट्रीटमेंट के लिए डीप टीएमएस के इस्तेमाल को मंजूरी दी थी. ये उन लोगों के लिए किया गया था जिन्हें पारंपरिक तरीकों से राहत नहीं मिल पाती है. इसे मंजूरी मिलने से पहले एक्सपोजर व रेस्पांस प्रिवेंशन, दवाई या फिर इन दोनों को मिलाकर ओसीडी मरीजों का इलाज किया जाता था. लेकिन इन तरीकों से जिन मरीजों को आराम नहीं मिल पाता या फिर पूरी तरह राहत नहीं मिल पाती, उनके लिए डीप टीएमएस एक उम्मीद की किरण है
कुल मिलाकर, डीप टीएमएस एक ग्राउंडब्रेकिंग और नॉन-इनवेसिव थेरेपी है जो ओसीडी और अन्य मेंटल कंडीशन से पीड़ित लोगों के लिए बहुत ही लाभकारी है. सर्जरी या एनेस्थीसिया के बिना ही इसके जरिए ब्रेन के स्पेसिफिक हिस्सों को स्टिुलेट किया जा सकता है जो इसे मरीजों व डॉक्टरों दोनों के लिए एक पसंदीदा ट्रीटमेंट मेथड बनाता है. इस विधि के सपोर्ट में लगातार रिसर्च की जा रही हैं, जिसके चलते ये उम्मीद है कि इसका प्रसार होगा और ज्यादा लोगों को इसका लाभ मिल सकेगा।
खबर व विज्ञापन के लिए संपर्क करें
मो .8218474080
ओसीडी से मिलेगी आपको मुक्ति, डीप टीएमएस थेरेपी का असर मरीजों को दे रहा लाभ
मुकेश कुमार संवाददाता/अमन केसरी न्यूज़
दिल्ली :- ऑब्सेसिव-कंपल्सिव डिसऑर्डर (OCD) एक तरह की मानसिक बीमारी है जिसमें बार-बार एक ही तरह के विचार आते हैं. दुनियाभर में ओसीडी से लाखों लोग ग्रसित हैं जिससे उन्हें तनाव होता है और उनकी रूटीन लाइफ पर इसका गलत असर पड़ता है. इस तरह के मामलों में हालांकि दवाई और थेरेपी काफी कारगर रहती हैं लेकिन कुछ बीमार ऐसे भी होते हैं जो इन तरीकों से ठीक नहीं हो पाते. इस तरह के मरीजों के इलाज के लिए एंटर डीप ट्रांसक्रेनियल मैग्नेटिक स्टिमुलेशन (डीप TMS)एक बहुत ही क्रांतिकारी और नॉन इनवेसिव ट्रीटमेंट है जो ओसीडी थेरेपी की तस्वीर बदल रहा है. इसमें मैग्नेटिक वेव के जरिए दिमाग के प्रभावित हिस्से को उत्तेजित किया जाता है और न्यूरोन रिपेयर की जाती है. इससे ओसीडी के लक्षणों में कमी आती है और मरीज को रिलीफ मिलता है. तुलसी हेल्थ केयर के फाउंडर व डायरेक्टर डॉक्टर गौरव गुप्ता ने डीप टीएमएस थेरेपी के बारे में विस्तार से जानकारी दी है.
इस प्रक्रिया में स्कैल्प यानी खोपड़ी से एक मैग्नेटिक कॉइल अटैच की जाती है जिसे किसी इलेक्ट्रिक पल्स जनरेटर या स्टिमुलेटर से जोड़ा जाता है. इससे कॉइल में इलेक्ट्रिक करंट जाता है जिससे मैग्नेटिक वेव पैदा होती हैं जो दिमाग के टारगेटेड एरिया पर जाकर लगती हैं. जिन मरीजों के दिमाग में मैग्नेटिक वेव से स्टिमुलेशन किया जाता है वो डिप्रेशन या ओसीडी के शिकार मरीजों की तुलना में ज्यादा एक्टिव पाए जाते हैं.
अन्य थेरेपी की तुलना में डीप टीएमएस का सबसे ज्यादा फायदा इसका नॉन इनवेसिव होना है. इलेक्ट्रोकंवल्सिव थेरेपी से उलट इसमें किसी एनेस्थीसिया या सीजर इंडक्शन की जरूरत नहीं होती जिससे मरीज की रिकवरी तुरंत होती है और मेमोरी लॉस जैसा साइड इफेक्ट नहीं होता. इसके अलावा, डीप टीएमएस एफडीए द्वारा अप्रूव है जिसे डिप्रेशन का वैकल्पिक उपचार माना गया है. स्टडी ज से पता चलता है कि इससे डिप्रेशन के लक्षण काफी कम होते हैं और दवाइयों से जो दुष्प्रभाव होते हैं वो भी इसमें नहीं होते.
डीप टीएमएस और स्टैंडर्ड टीएमएस में ये अंतर होता है कि मैग्नेटिक पल्स ब्रेन के अंदर कहां तक जा पाती है. डीप टीएमएस में ब्रेन के अंदर ज्यादा स्टिमुलेशन हो पाता है जिसके चलते ओसीडी व अन्य दिमागी बीमारियों के इलाज में ये प्रक्रिया काफी असरदार साबित होती है. ओसीडी के मामलों में डीप टीएमएस प्रक्रिया से इलाज को लेकर बहुत सारी स्टडीज में पॉजिटिव रिजल्ट बताए गए हैं. डीप टीएमएस प्रक्रिया से गुजरने वाले करीब 75 फीसदी मरीजों की हालत में सुधार हो जाता है जिनमें से करीब आधों को राहत मिल जाती है. इस तरह ओसीडी व मेंटल कंडीशन के मामलों में ये ट्रीटमेंट काफी फायदेमंद रहा है.
द यूएस फूड एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने 2018 में ओसीडी ट्रीटमेंट के लिए डीप टीएमएस के इस्तेमाल को मंजूरी दी थी. ये उन लोगों के लिए किया गया था जिन्हें पारंपरिक तरीकों से राहत नहीं मिल पाती है. इसे मंजूरी मिलने से पहले एक्सपोजर व रेस्पांस प्रिवेंशन, दवाई या फिर इन दोनों को मिलाकर ओसीडी मरीजों का इलाज किया जाता था. लेकिन इन तरीकों से जिन मरीजों को आराम नहीं मिल पाता या फिर पूरी तरह राहत नहीं मिल पाती, उनके लिए डीप टीएमएस एक उम्मीद की किरण है
कुल मिलाकर, डीप टीएमएस एक ग्राउंडब्रेकिंग और नॉन-इनवेसिव थेरेपी है जो ओसीडी और अन्य मेंटल कंडीशन से पीड़ित लोगों के लिए बहुत ही लाभकारी है. सर्जरी या एनेस्थीसिया के बिना ही इसके जरिए ब्रेन के स्पेसिफिक हिस्सों को स्टिुलेट किया जा सकता है जो इसे मरीजों व डॉक्टरों दोनों के लिए एक पसंदीदा ट्रीटमेंट मेथड बनाता है. इस विधि के सपोर्ट में लगातार रिसर्च की जा रही हैं, जिसके चलते ये उम्मीद है कि इसका प्रसार होगा और ज्यादा लोगों को इसका लाभ मिल सकेगा।
खबर व विज्ञापन के लिए संपर्क करें
मो .8218474080